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Jitiya Vrat Katha jivitputrika Pooja most Popular Indian festival

What Is jivitputrika festival 3 Storys in हिंदी। पुत्रों की रक्षा।।

Jitiya Vrat Katha jivitputrika Pooja most Popular Indian festival
जितिया का व्रत अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत में माताएं अपनी संतान के सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए पूरा दिन तथा पूरी रात 24 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं।
यह सबसे कठिन रातों में से एक है। 
इसे भी छठ के महापर्व की तरह 3 दिन तक किया जाता है।यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी से शुरू होकर नवमी तक चलता है।
सप्तमी का देनी नहाए खाए के रूप में मनाया जाता है यह बिल्कुल छठ की तरह ही होता है इस दिन महिलाएं सुबह सुबह उठकर गंगा स्नान करती हैं और पूजा करते हैं।
अगर आपके आसपास गंगा नदी नहीं है तो आप नहाने के पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान करके भी पूजा का संकल्प ले सकती हैं।
नहाए खाए कि नहीं सिर्फ एक ही बार भोजन करना होता हैएम इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है। नहाए खाएगी रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है मान्यता है। 
कि यह खाना चील और सियारिन के लिए रखा जाता है।
व्रत के दूसरे दिन यानी आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को खुद चीटियां कहा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है। और अगले दिन कारण कुछ भी ग्रहण नहीं करती व्रत के तीसरे और आखिरी दिन पारण किया जाता है जितिया के पारण के नियम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग है।
पारण के बाद आप कैसा भी पूजन कर सकते हैं। इस व्रत में विधि विधान से पूजा करने के बाद व्रत कथा को अवश्य सुनना चाहिए आइए जानते हैं।

जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा।

Jitiya Vrat Katha Surjahi festival Festivals of Bihar What is jivitputrika festival Indian festival
पुराण एक कथा के अनुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ तो अश्वत्थामा नाम का हाथी मारा गया लेकिन चारों तरफ यह खबर फैल गई कि अश्वत्थामा मारा गया।
यह शंकर अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य ने पुत्र शोक में असर डालते हैं तब द्रौपदी के भाई कृष्ण ने उनका वध कर दिया पिता की मृत्यु के कारण अश्वत्थामा के मन में प्रतिशोध की अग्नि जल रही थी।
अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए मैं रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में जा पहुंचा उसने पांडवों के पांचों पुत्रों को सोया हुआ देखकर उन्हें पांडव समझ लिया।
और उन के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी परिणाम स्वरूप पांडवों को अत्यधिक क्रोध आ गया तब भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा से उसकी मणि छीन ली जिसके बाद अश्वत्थामा पांडवों से क्रोधित हो गया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को जान से मारने के लिए उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया।
भगवान श्रीकृष्ण इस बात से भलीभांति परिचित थे कि ब्रह्मास्त्र को रोकना असंभव है। लेकिन उन्हें उत्तरा के पुत्र की रक्षा करना अति आवश्यक लगा इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल एकत्रित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दे दिया।
उत्तरा के गर्भ में पल रहा बच्चा पुनर्जीवित हो गया यह बच्चा बड़ा होकर राजा परीक्षित बना उत्तरा के बच्चे के दोबारा जीवित हो जाने के कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत पड़ा।
तब संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है।

जानिए जितिया व्रत पूजा में हम किस की पूजा करते है। 

Jitiya Vrat Katha Surjahi festival Festivals of Bihar What is jivitputrika festival Indian festival
भगवान जीमूत वाहन कौन है। और एक ऐसे देवता बस एक बार जी मूर्ति वाहन गंधमादन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे उसी समय उनके कानों में एक वृद्ध स्त्री के रोने की आवाज आए।
महिला के पास जाकर रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैं शंखचूड़ नाग की माता हूं आज भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ शंख चूर्ण को उठाकर ले जाएगा और खा जाएगा।
दुखी होकर रो रहे वाहन ने कहा कि मैं आज आपके पुत्र के बदले गरुण का आहार बनूंगा और आपके पुत्र की रक्षा करूंगा। गरुड़ शंख चूर्ण को लेने आया तो जीमूत वाहन शंखचूड़ बन कर बैठ के अरुण जीमूत वाहन को लेकर उड़ चला लेकिन कुछ देर जाने के बाद उसे एहसास हुआ कि वह शंख चूर्ण की जगह का मानक उठा लाया है।
अरुण ने पूछा कि हे मानव तुम कौन हो और मेरा भोजन बनने क्यों चले आए इस पर वाहन ने कहा कि हो राजा जी मुक्त वाहन है। चूंकि माता को पुत्र वियोग से बचाने के लिए मैं आपका आहार बने चलाया।
राजा की दया और परोपकार की भावना से प्रसन्न लोगों की मौत वाहन को वरदान दिया कि तुम 100 सालों तक पृथ्वी का राज भोकर बैकुंठ जाओगे जिनकी माता को पुत्र वियोग का दर्द नहीं सहना पड़ा।
कृष्ण अष्टमी के दिन से जीमूत वाहन और जीवित्पुत्रिका व्रत का विधान शुरू हुआ।

अब शुरू करते हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत की दूसरी कथा 

इस कथा के अनुसार गंधर्व के एक राजकुमार थे जिनका नाम जीमूत वाहन था वह बहुत उदार परोपकारी थे।
बहुत कम आयु में ही 19 सप्ताह मिल गई थी। लेकिन उनका मन सत्ता के कार्यभार में नहीं लगता था ऐसे में वह अपना राज्य छोड़कर अपने पिता की सेवा के लिए वन में चले गए।
वन में उनका विवाह मायावती नाम की एक राज कन्या से हुआ एक दिन जब जीमूत वाहन वन में भ्रमण कर रहे थे तो उन्होंने एक वृद्ध महिला को विलाप करते हुए देखा। 
उस महिला का दूध डेयरी कर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने वृद्धा को भी लाभ का कारण पूछा इस प्रवृति स्त्री ने बताया मैं नाग वर्ष की स्त्री हूं और मेरा एक ही पुत्र है पक्षीराज गरुड़ के सामने प्रतिदिन खाने के लिए इतना सोचने की प्रतिज्ञा हुई है।
Jitiya Puja Jitiya Vrat 2023 Jitiya puja date 2023 Jitiya Vrat Katha
जिसके अनुसार आज मेरे पुत्र शंखचूड़ को भेजने का दिन है शंख चोर मेरा इकलौता पुत्र है। अगर मेरे इकलौते पुत्र की बलि चढ़ गई तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगी।
यह संकल्प जीमूत वाहन का दिल पसीज उठा उन्होंने कहा मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा कि वह स्वयं अपने आप को उसके लाल कपड़े में टक्कर व थे, शीला पर लेट जाएंगे।
जब पक्षीराज गरुड़ वहां पहुंच गए तो वे लाल कपड़े में थके हुए चिन्हुत वाहन को अपने पंजे में दबोच कर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए पक्षीराज गरुड़ यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि उन्होंने जिसे अपने चंगुल में गिरफ्तार किया है। उसकी आंख में आंसू औरों से आहा तक नहीं निकल रही।
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ आखिरकार गरुड़ जी ने जीमूत वाहन से उनका परिचय पूछा गरुड़ जी के पूछने पर जीमूत वाहन ने उसे स्त्री से हुई अपनी सारी बातों के बारे में बताया।
खिराज करोड़ हैरान हो गए उन्हें इस बात पर आश्चर्य हो रहा था। कि कोई किसी की मदद के लिए ऐसी कुर्बानी भी दे सकता है। गरुड़ जी इस बहादुरी को देखकर काफी प्रसन्न हुए।
जीमूत वाहन को जीवनदान दे दिया साथ ही उन्होंने भविष्य में नागों की बलि ना लेने की बात भी कही इस प्रकार के पुत्र की रक्षा हुई मान्यता है कि तब से ही पुत्र की रक्षा के लिए हिम्मत वाहन की पूजा की जाती है।

  • 1. जितिया पर्व संतान की सुख समृद्धि के लिए रखा जाने वाला व्रत है। व्रत में निर्जला ज्ञानी की बिना पानी के पूरे दिन उपवास किया जाता है। यह प्रवास में कृष्ण पक्ष के साथ नौवें चंद्र दिवस तक 3 दिनों तक मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है इसके अलावा नेपाल के मिथिला और थ्रू हट में भी यह मनाया जाता है। आप ऑनलाइन या कैलेंडर में देखे।
उदया तिथि की मान्यता के अनुसार यह व्रत 10 सितंबर को रखा जाएगा जीटीए व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले जाकर स्नान करके पूजा करती है। और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती है। और उसके बाद पूरा दिन सुबह स्नान के बाद में पूजा पाठ करती हैं।
तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं। सूर्य को अर्घ देने के बाद ही महिलाएं अन्य ग्रहण कर सकती हैं। मुख्य रूप से पर्व के तीसरे दिन और भारत मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।
प्रदोष काल में महिलाएं जीमूत वाहन की पूजा करती है। जी मुक्त वाहन की कुशल से निर्मित प्रतिमा को धूप दीप अक्षत पुष्प आदि अर्पित करके पूजा की जाती है।
इसकी मिट्टी और गाय के गोबर से सियारिन और चील की प्रतिमा भी बनाई जाती है। प्रतिमा बन जाने के बाद उसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। 
पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा भी सुननी चाहिए करने से संतान की लंबी उम्र होती है। और वह माता-पिता ही नहीं बल्कि पूरे कुल का नाम रोशन करता है।

जितिया व्रत की सामग्री जानिए पूरी जानकारी के साथ।

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन सामग्री।
वाहन की कोशिश से निर्मित प्रतिमा धूप दीप चावल फूल 
16 पेड़ा 
16 दूध की माला 
16 पड़ा चावल 
16 गांठ का धागा 
16 लॉन्ग 
16 खड़ी सुपारी और श्रृंगार का सामान बांध मिट्टी और गोबर से निर्मित मादातील और मादा सियार की मूर्ति दूर खीरा और गूंगे के राव चूड़ा दही सरसों का तेल और हल्दी। 

आइए आप जानते हैं जितिया व्रत की तीसरी कथा।

Jitiya Puja Jitiya Vrat 2023 Jitiya puja date 2023 Jitiya Vrat Katha
नर्मदा नदी के पास कंचन बाटी नाम का एक नगर था। ओके राजा मलाई केतु थे। नदी के पश्चिम दिशा में मरूभूमि थी। जिसे बालू हटा कहा जाता था वहां विशाल पाकड़ का एक पेड़ था। उस पेड़ पर चीज रहती थी। 
पेड़ के नीचे खोखर था। 
जिसमें सियारिन रहती थी चील और सियारिन में गहरी दोस्ती थी। एक बार दोनों ने मिलकर कुछ स्त्रियों को जितिया व्रत करते हुए देखा तब उन्होंने जितिया का व्रत करने का संकल्प लिया।
इन दोनों ने भगवान शिव वाहन की पूजा करने के लिए निर्जला व्रत रखा व्रत के दिन उस नगर के बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और व्यापारी का दाह संस्कार वही मरुस्थल पर ही किया गया।
3 महीने के बाद जब रात हुई तो वहां मौसम खराब हो गया बिजली कड़कने लगी और बादल भी गरजने लगे वहां पर बहुत बड़ा तूफान आ गया था। 
सियारिन को अब भूख लगने लगी मुर्गा देखकर वह खुद को रोक ना पाए और उस हमारी के शरीर को खा लिया और उसका व्रत टूट गया पर छीलने संयम रखा और नियम व श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया।
फिर अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण के परिवार में पुत्रियों के रूप में जन्म लिया शील बड़ी बहन बनी और उसका नाम श्रीमती रखा गया।
श्रीवती की शादी पुतली सेल के साथ हुई सियारिन छोटी बहन के रूप में जन्मी और उसका नाम कपूर आवती रखा गया उसकी शादी नगर के राजा मलाई केतु से हुई। 
अब अमरावती कंचन पार्टी नगर की रानी बन गई भगवान जिउतवाहन के आशीर्वाद से श्रीमती के साथ बैठे हुए पर कपूर आवती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। होला मोहल्ला फेस्टिवल के बारे मे सम्पूर्ण जनकारी। 
कुछ समय बाद श्रीमती के सातों पुत्र बड़े हो गए वह सभी राजा के दरबार में काम करने लगे कपूर आवती के मन में उन्हें देखकर ईर्ष्या की भावना आ गई।
उसने राजा से कहकर श्रीमती के सभी पुत्रों के सर कटवा दिए और उन्हें 7 नए बर्तन मंगवा कर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर श्रीमती के पास भिजवा दिए यह देखकर भगवान जी उस वाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों केसर बनाएं।
सभी के सिर को उनके धड़ से जोड़ कर उन पर अमृत छिड़क दिया।
जिससे सभी में जान आ गई और श्रीमती के सातों पुत्र जिंदा हो गए। और घर लौट आए जो कटे हुए सिर लाने ने भेजे थे। 
विफल बन गए और दूसरी ओर रानी कपूर आवती बुद्धि से इनके घर से पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनने के लिए। व्याकुल थे। 
जब बहुत देर तक कोई समाचार नहीं आया तो कब बुरा वती स्वयं ही बड़ी बहन के घर चली गई वहां सब को जिंदा और खुश देखकर वह बेहोश हो गई, जब उसे होश आया तो उसने अपनी बहन को सारी बात बताई।
उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। भगवान जिउतवाहन की कृपा से श्रीमती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गई वह कपूर आवती को लेकर उसी पकड़ के पेड़ के पास गई और उसे सारी बातें बताई सारी बातें सुनकर कपूर आवती बेहोश हो गई और मृत्यु को प्राप्त हुई।
राजा को इसकी खबर मिली तो उन्होंने उसी जगह पर जाकर पकड़ के पेड़ के नीचे कपूर आवती का दाह संस्कार कर दिया कथा समाप्त।

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