कैसे मानते है होला मोहल्ला फेस्टिवल सीखो का तेव्हार।
आज हम आपको सिखों के खास त्यौहार होला मोहल्ला के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे भारत सरकार द्वारा नेशनल फेस्टिवल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
कई लोग बोली और होला मोहल्ला को एक है। तोहार समझते हैं। जबकि यह दोनों तोहार अलग-अलग है। होली के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं। जबकि होला मोहल्ला में सीख लो नकली सोच लड़कर अपने मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं।
होला मोहल्ला क्यों मनाया जाता है। और पंजाब में यह त्योहार इतना प्रसिद्ध क्यों है।
गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना करने से पहले मुगल शासक बेकसूर लोगों पर बहुत अत्याचार किया करते थे। और जबरदस्ती उन्हें मुस्लिम बनाया करते मनमानी रोकने से मुकाबला करने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 खालसा पंथ की स्थापना की है।
आंखों के दो दल बनाकर एक खास स्थान पर एक दल से दूसरे दल पर हमला करवाते हैं। जिसमें 2 घुड़सवार शास्त्रों के साथ एक दूसरे पर हमला करते जो दलजीत जाता उसे गुरु जी द्वारा सम्मान के रूप में शुरू पर भेंट किए जाते हैं।
इस प्रकार गुरु जी ने लोगों को शक्तिशाली बनाया अब हम जानेंगे कि होला मोहल्ला पंजाब में कैसे बनाया जाता है।
वैसे तो होला मोहल्ला 3 दिन का त्योहार है। पर इस उत्सव की तैयारियां पंजाब में हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती हैं। पंजाब के गुरुद्वारे खासतौर से श्री आनंदपुर साहिब और किरतपुर साहिब में मार्च के महीने में होला मोहल्ला का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
इस उत्सव में यहां के स्थानीय लोग दूर-दूर से आने वाली संतो के लिए लंगर का प्रबंध करते हैं। आटा दाल चावल सब्जी और दूध जैसे कच्ची सामग्री उपलब्ध कराते हैं।
अंकुर के राज्यों से आए संतों को एक साथ बिठाकर पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं यह तो हार पंजाब में ही सीमित न रहकर बल्कि देश विदेश के गुरुद्वारों में भी बड़ी धूमधाम और श्रद्धा से मनाया जाता है।
अब हम जानेंगे होला मोहल्ला से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
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होला मोहल्ला से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों |
- मोहल्ला के अवसर पर आनंदपुर साहिब नगरी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है इस समय सही मायने में यह शहर आनंद का शहर बन जाता है। उत्सव के दौरान छोटे-छोटे बच्चे और युवा चलाते तीरंदाजी तथा कई तरह के करतब करते नजर आते हैं।
- अखबारों में गुरु गोविंद सिंह जी के शस्त्रों का प्रदर्शन भी किया जाता है दीवान सजाए जाते हैं। शब्द कीर्तन और अखंड पाठ करवाए जाते हैं लोग विभिन्न राज्यों से ट्रकों व ट्रॉली ओं में आनंदपुर साहिब और किरतपुर में पहुंचते हैं।
- सभी संतो के रहने का या बड़े अच्छे से प्रबंध किया जाता है। उस सब के तीसरे दिन गुरुजी के पास प्यारे श्री आनंदपुर साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारे श्री केशगढ़ साहिब से चलकर किला आनंदगढ़ किला लोकल और माताजी तो जी के गुरुद्वारे में पहुंचते हैं।
- प्रभा के दर्शन करने के बाद वापिस श्री केसगढ़ साहिब में आ जाते हैं। जिन रास्तों से गुरु जी के यह पांच प्यारे निकलते हैं।
कुछ कुछ दूरी पर भक्तों द्वारा लंगर का आयोजन किया जाता है। यह नजारा देखकर हर कोई बहुत प्रभावित होता है। कि सिखों के मन में अपने गुरु के प्रति कितनी श्रद्धा और प्रेम भाव है।
जानिए होला मोला फेस्टिवल की हिस्ट्री क्या है। जान कर हैरान हो जाओगे।
होला मोहल्ला वह दिन है। जब गुरु से अभिषेक को में युद्ध कला के गुण भरते थे यह दिन हर साल मनाई जाने वाली युद्ध कलाओं की प्रतियोगिता है। जो तो सिख जोधा साल भर कद का घुड़सवारी तलवारबाजी और अनेकों शस्त्र विद्या सीखते थे।
लेकिन साल में कुछ दिन ऐसे भी रखे जाते थे जब सभी सिक्कों में मुकाबला करवा कर उनका हुनर फर्क आ जाता था कहते हैं। इस प्रथा की शुरुआत श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने 1780 में शुरू की।
जहां से शुरू की वहां पर नौगढ़ गुर्जर से बना हुआ है। और इस प्रथा को खोल अंबाला का नाम जाएगा होला करते हैं। दुश्मन पर हल्ला करना भाव आक्रमण करना और मोहल्ला करते हैं जिस स्थान पर हमला कर रहा है। हमला करने वाला संतो इस पावन दिवस पर गुरु सहारनपुर से आपके किलो के अंदर और बाहर पर आपने युद्ध करवाकर बाप होला मोहल्ला के द्वारा सिखों की युद्ध कला को परखा करते थे।
जैसे आनंदपुर शहर में किला लोहगढ़ साहिब है। तो किला नौगढ़ में सिक्खों के अलग-अलग तो उधर बनाते हैं। एक को गिरे कैसे रखते दूसरे को खेलें के बाहर फिर और मैं मुकाबला करवा कर देखा जाता कि कौन अपने समझदारी और ताकत के साथ के लिए पर अपना हक जमाए रखता है। कौन जीता है।
इस तरह से और भी खेल होते जैसे बोर्ड सवारी तलवारबाजी आदि जो आज भी आनंदपुर से हमें देखने को मिलते हैं यह जो मुकाबले थे। यह पूरा हफ्ता चाहते थे। और इनके साथ ही सुबह शाम कथा कीर्तन भी चलता गुरु का लंगर भी चलता संघ जिसका राशि जहां पर योद्धाओं को अपनी ताकत जाने का अवसर मिलता वहीं पर और लोग तो देखने आते व्याधि से देखकर इस युद्ध कला को सीखने के लिए आगे अध्ययन में भी वीर योद्धा बनने का साहस पैदा होता था।
बड़ी ही धूमधाम से न केवल श्री आनंदपुर से बल्कि और भी बहुत सारे को दर्शा में इस दिवस को मनाया जाता है बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। और इस दिन आज भी सीख जोधा मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं। मुकाबले करवाए जाते हैं और साथ ही में कथा कीर्तन और लकड़ी चलता है।
भोला के दिन आनंदपुर शहर में गुरु के प्यारों का बहुत बड़ा जोड़ मेला होता है। बहुत सारे लोग चलते हैं। आपस में मिलते हैं। लोग गुरु साहेब की कथा सुनते हैं। कि तुम सुनती है। सिख योद्धाओं के मार्शल आर्ट सकते हैं। और गुरु से इस पावन स्थान के दर्शन करके उनके चरणों में नमस्कार करके अपने जीवन को धन्य करते है।
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