Chhath Pooja Festival All Information How To Celebrate 2022.
देवों की भूमि कहा जाता है इन्हीं पदों में से एक खास पर्व है दीपावली 5 दिन तक चलने वाला यह पर्व सिर्फ भैया दूज तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पर्व छठ महापर्व तक चलता है भारत के बिहार झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाले पदों में से छठ महापर्व एवं पर्व है धीरे-धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्व भर में प्रचलित व्यतीत हो गया है।
हाय हाय करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाला इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। छत पर शुरुआत आखिर कैसे हुई इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित है कुरान में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रबंध को लेकर है। कहते हैं।
राजा प्रिय बंधु को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रबंध की पत्नी मालिनी को यहूदी के लिए बनाई गई कीर्ति इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
पुत्र मृत पैदा हुआ प्रबंध पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में प्राण जागने लगे उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट में उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे वंश में उत्पन्न हुई है।
इसी कारण वशिष्ठ कहलाती है उन्होंने राजा को अपनी पूजा और दूसरों को पूजा करने के लिए प्रेरित करने को कहा राज्य प्रबंध ने पुत्र की इच्छा के कारण देवी सृष्टि की वध की और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई कहते हैं यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। तभी से यह छठ पूजा होती है
इस कथा के अलावा एक कथा राम सीता जी से भी जुड़ी हुई है।
पौराणिक उनके मुताबिक जब राम सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राज सूर्य करने का फैसला लिया।
पूजा के लिए उन्होंने मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया मुद्गल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना करने का आदेश दिया।
जिसे सीता माता ने मुद्गल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिन तक सूर्य देव भगवान की पूजा की थी।
छठ पर्व किस प्रकार मनाया जाता है।
चार दिवसीय उत्सव है इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को होती है इस दौरान व्रत करने वाले लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं।
छठ पूजा भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है। जो कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन मनाया जाता है। छठ पूजा मुख्य द्वार से सूर्य देव की उपासना का पर्व है।
इस दौरान प्रति छात्रों का व्रत रखती है। पुराणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत रामायण के दौरान हुई थी रावण का वध कर जब प्रभु श्री राम और मां सीता वनवास से अयोध्या लौटे उन्होंने इस बात का पालन किया था ऐसा भी मानते हैं। कि जो सूर्य देव के पुत्र हैं वह सूर्य भगवान के परम भक्त और पानी में घंटों खड़े रहकर अर्घ्य देते थे।
पांडवों के स्वस्थ और दीर्घायु के लिए द्रौपदी भी सूर्य देव की उपासना करती थी कहते हैं। कि उसकी श्रद्धा के कारण पांडवों को अपना राज्यपाल फिर से मिला था। इस पर से जुड़ी एक और पुरानी कहानी प्रचलित है।
प्रियव्रत और रानी मालिनी संतान थे जिसका बहुत दुखी थे तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रकामेश्ती यज्ञ करने की सलाह दी।
उन्होंने महर्षि कश्यप ने यज्ञ के प्रसाद के रूप में स्थानीय मालिनी को खाने के लिए दी, कुछ समय पश्चात ही राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब थी कि वह बच्चा अवस्था में पैदा हुआ। जब अपने पुत्र कम रहती है। लेकर श्मशान गए और उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देनी चाहिए तभी उनके सामने तेज से ना जाने की छठ देवी वह प्रकट हुई जिन्हें सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
उन्होंने राजा को बताया कि अगर कोई सच्चे मन से विधिवत उनकी पूजा करें तो उस व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती है। टीवी राजा को उनकी पूजा करने की सलाह दी इस बात को सुनकर राजा ने देवी शेट्टी की सच्चे मन से पूजा की उन्हें प्रसन्न किया।
पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया कहते हैं। कि राजा ने जिस दिन भाव पूजा की थी वह कार्तिक शुक्ला की सृष्टि का दिन था और उस दिन से आज तक इस पूजा की प्रथा चलती आ रही है।
आज के लोग इस बात को संतान प्राप्ति और अपने घरवालों की सुख समृद्धि तथा दीर्घायु के लिए करते हैं। छठ पूजा के चार महत्वपूर्ण दिन होते हैं।
1. नहाए खाए छठ पूजा का पहला दिन होता है।नहाए खाए सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। जिसके बाद व्रती स्नान कर अपने आप को पवित्र करते हैं। स्नान करने के पश्चात शुद्ध और सात्विक भोजन कर व्रत की शुरुआत करते हैं।चना दाल लौकी की सब्जी रोटी के साथ खाई जाती है। खाने को सबसे पहले प्रति खाते हैं। और उसके बाद घर के बाकी सदस्य आते हैं। खन्ना छठ पूजा का दूसरा दिन है करना इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति पूरे दिन का उपवास रखती है। जिसमें ना ही वह कुछ खाती है ना ही कुछ पी सकती है।
2. शाम के समय गुड वाली खीर प्रसाद के तौर पर बनाई जाती है जिसे रसिया ओ खीर कहती है और जिसे पूजा करने के बाद रतीह आते हैं। छठी मैया के लिए चासनी गेहूं का आटा और घी से बनाई मिठाई ठेकुआ प्रसाद के तौर पर बनाते हैं।
3. संध्या आरती सा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन है।इस पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं फिर शाम में वह नदी या तालाब के यहां खड़ा होकर डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं। रति घाट की तरह फर्क है देने के लिए जा रही होती है कभी उनका बेटा या घर का कोई एक पुरुष एक बांस की बनी हुई टोकरी लेकर आगे चल रहा होता है जिसे पहांगी की कहते हैं। फल प्रसाद और पूजा की सामग्री रखी जाती है।
4. उषा के छठ पूजा के चौथे दिन उगते सूरज की पूजा करते हैं।अति और अन्य घर के लोग फिर एक बार नदी के किनारे इकट्ठा होते हैं। और छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए उनके गीत गाती है। फिर रति प्रसाद और कच्चे दूध के शरबत का सेवन कर व्रत तोड़ते हैं। और इस तरह छठ पूजा की समाप्ति होती है।
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