Most popular Baisakhi festival story 2022.
भारत त्योहारों का देश है यहां कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं और सभी धर्मों के अपने-अपने त्योहार हैं इस प्रकार यहां साल भर में हर दिन किसी न किसी धर्म को मानने वाले लोगों के लिए खास होता है।
इसी प्रकार की राइफल का दिन सिख लोगों के लिए खास होता है यह समय ही कुछ अलग ही होता है खेतों में रवि की फसल पक कर ले लाती है किसानों के मन में फसलों को देखकर खुशी रहती है।
अपने इस खुशी का इजहार इस त्यौहार को मना कर करते हैं वैसे इस त्यौहार को मनाए जाने के कारण को लेकर कई अलग-अलग मान्यताएं हैं इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है।
यह भी त्योहार मनाए जाने का एक कारण है। नमस्कार दोस्तों जहां आज मैं आपको वैशाखी का इतिहास व महत्व बताने जा रही हूं।
कहां जाता है। किस सन 1699 में इसे दिल सिखों के अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को खालसा के रूप में संगठित किया था। यह भी इस दिन को खास बनाने का एक कारण है इस त्यौहार की तैयारी भी सबसे बड़े त्यौहार दीपावली की ही तरह कई दिनों पहले से शुरू हो जाती है।
लोग घरों की सफाई करते हैं। आंगन को रंगोली और लाइटिंग से सजाते हैं।
घरों में पकवान बनाते हैं इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना अलग महत्व है।
सुबह के समय स्नान आदि के बाद सिखों लोग गुरुद्वारे जाते हैं इस दिन गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ का पाठ किया जाता है। कीर्तन आधी करवाई जाते हैं नदियों के नारों में लोगों का आयोजन किया जाता है।
और इन मेलों में काफी भीड़ भीड़ उमड़ती है। पंजाबी लोग इस दिन अपनी खुशी को अपने विशेष नृत्य भांगड़ा के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं बच्चे बड़े महिलाएं सभी ढोल की आवाज में मत शक हो जाते हैं। और हर्ष उल्लास से नाचते गाते हैं।
बैसाखी त्योहार का इतिहास संत 1699 की बात है।
सिखों की गुरु गोविंद सिंह जी ने सभी सिखों को आमंत्रित किया गुरु का आदेश वादे ही सभी धर्म को मानने वाले लोग आनंदपुर साहिब मैदान में एकत्रित होने लगे यहां गुरु के मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने की इच्छा उत्पन्न हुई।
अपनी तलवार को कमान से निकालते हुए कहा कि मुझे सर चाहिए गुरु के ऐसे वचन सुनते ही सारे भाग आश्चर्य में पड़ गए परंतु इसी बीच लाहौर के रहने वाले दयाराम ने अपना सिर गुरु की शरण में हाजिर किया।
गुरु को सिंह जी उसे अपने साथ अंदर ले गए और उसी समय अंदर से रक्त की धारा प्रवाहित होती दिखाई दी वहां मौजूद सभी लोगों को लगा कि दयाराम का सिर कलम कर दिया गया है। गुरु गोविंद सिंह जी फिर फोन हमारे पर अपनी तलवार दिखाते हुए कहने लगे मुझे सर चाहिए।
इस पर सहारनपुर के रहने वाले धर्मदास आगे आए उन्हें भी गुरुद्वारा अंदर की ओर ले जाया गया और फिर खून की धारा बहती हुई दिखाई दी इसी प्रकार और तीन लोगों को जगनाथ निवासी हिम्मत राय द्वारका निवासी मोहनचंद तथा बिहार निवासी साहिब चंद ने अपना सिर गुरु के शरण में अध्यक्ष किया।
तीनों का भी क्रमश अंदर ले जाने के बाद खून की धारा बहती हुई दिखाई दी सभी को लगा कि इन 5 लोगों की बलि दी जा चुकी है परंतु इतने में ही गुरु इन 5 लोगों के साथ बाहर आते हुए दिखाई दिए गुरु ने वहां उपस्थित लोगों को बताया कि इन पांचों की जगह अंदर पशु की बलि दी गई है।
इन लोगों की परीक्षा ले रहा था और यह लोग इनकी इस परीक्षा में सफल हुए गुरु ने इस प्रकार इन 5 लोगों को अपने पांच प्यारों के रूप में परिचित कराया तथा इन्हें अमृत का रसपान कराया और कहा कि आज से तुम लोग सिंह कहलाओगे और उन्हें बाल और दाढ़ी बड़ी रखने के निर्देश दिए और कहा कि वे लोग अपने बालों को संवारने के लिए गंगा अपने साथ रखें।
रक्षा के लिए कृपाण रखी कक्षा धारण करें तथा हाथों में कड़ा बहने गुरु ने अपने शिष्य को निर्मलो हाथ ना उठाने के निर्देश दिए इस घटना के बाद से ही गुरु गोविंद राय गुरु गोविंद सिंह कहलाए। आपके नाम के साथ भी सिंह शब्द जुड़ गया और यह दिन भी खास हो गया।
इस त्यौहार से जुड़ी दूसरी कथा महाभारत के पांडवों के समय की है।
पाया जाता है। कि जब अपने वनवास के समय पांडव पंजाब के कटरा स्टाल पहुंचे तो उन्हें पड़ी चोरों की प्यास लगी प्यास को बुझाने युधिष्ठिर को छोड़कर चारों भाई जिस सरोवर के पास पहुंचे वहां के जल का पान उन्हें यक्ष के मना करने के बाद भी किया।
परिणाम स्वरूप उन चारों की मृत्यु हो गई जब बहुत देर तक अपने भाइयों को वापस आता ना देख युधिष्ठिर को अपने भाइयों की चिंता हुई और वह उनकी तलाश में निकल पड़े जब युधिष्ठिर भी उस तालाब के पास पहुंचे पानी पीने के लिए आगे हुए, तब यक्ष पुनः आए।
कहने लगे कि पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर करो फिर भी आप पानी पी सकते हैं यक्ष प्रश्न करते गए और युधिष्ठिर उत्तर दे दे गए यक्ष उनसे प्रसन्न हुए उन्हें अपने भाइयों के मृत होने की बात बताई और कहा कि आप के भाइयों में आप किसी एक को जीवित करवा सकते हैं।
तब युधिष्ठिर ने अपने भाई से दे को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की यक्ष ने आश्चर्य से पूछा कि अपने सगे भाइयों को छोड़कर अपने सौतेले भाई को जीवित करवाने की मांग आपने क्योंकि तब युधिष्ठिर ने उत्तर में कहा कि माता कुंती के 2 पुत्र जीवित रहें इससे अच्छा होगा कि माता माधुरी का भी एक पुत्र जीवित रहे।
युधिष्ठिर की 5 प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके चारों भाइयों को जीवनदान लिया तब से ही इस दिन पवित्र नदी के किनारे विशाल मेला लगता है। और जुलूस भी निकाला जाता है। और जुलूस में पांच प्यादे नंगे पांव सबसे आगे चलते हैं और बैसाखी का त्यौहार उत्साह से मनाया जाता है।
वैशाखी पर्व महत्व
ऐसा कि क पर किसानों का प्रमुख त्योहार है किसान इससे अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं। वैशाखी पर्व कब मनाया जाता है। वैसे तो यह त्योहार पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है परंतु पंजाब और हरियाणा में इस तरह की धूम कुछ और तरह से ही रहती है।
यह पर हर साल 14 अप्रैल को मनाया जाता है हर साल मनाए जाने वाले इस त्योहार बैसाखी को सिखों में विशेष महत्व है।
Read More और भी पढ़े >>
Thank you for valuable comment in this Website & Wish All Festival" pay thank you a lots of, we have lots of ideas and posts you can check it in our website thanks 🌷🌷