What is Ratha Saptami Puja you must know this festival 2022.
क्यों मनाया जाता है। रथ सत्मी फेस्टिवल को?
सप्तमी माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। आमतौर पर रथसप्तमी का पर्व बसंत पंचमी के दूसरे या तीसरे दिन ही मनाया जाता है। इस पर्व को सूर्य जयंती बांध जयंती अंबाग सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान विष्णु के अवतार सूर्य देव की आराधना की जाती है। क्यों मनाते हैं। रथसप्तमी सूर्य भगवान के जन्मदिन के रूप में रथसप्तमी बनाई जाती है। इस दिन भगवान सूर्य ने पूरे विश्व को अपनी ऊर्जा से रोशन किया था। रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करना बहुत शुभ माना गया है।
तरीके सूर्य देव को समर्पित उसे पर्व के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व पवित्र जल में स्नान करना बेहद शुभ माना गया है।
अरुणोदय में रथसप्तमी स्नान करना इस दिन की महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक है। अरुणोदय सूर्योदय से कुछ समय पूर्व होता है। जिसमें स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। और सभी बीमारियों से बचा रहता है। सौभाग्य समृद्धि और वैभव का मार्ग खुलता है।
अचला सप्तमी को रथ सप्तमी सूर्य सप्तमी या आरोप शब्द में भी कहा जाता है। इस साल अचला सप्तमी 19 फरवरी शुक्रवार को है। अचला सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है जो आरोग्य प्रकाश धनसंपदा और पुत्र रत्न का वरदान देते हैं।
सूर्य के उत्तरायण होने पर प्रकृति की असीम ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए तमाम विधान बनाए गए हैं। उन्हीं में से एक है। रथसप्तमी इस दिन को कश्यप ऋषि और अदिति के सहयोग से भगवान सूर्य का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को सूर्य की जन्म तिथि भी कहा जाता है।
इनसे सूर्य के साथ हो घोड़े उनके रात को बाहर करना प्रारंभ करते हैं इसलिए इसे रथसप्तमी कहा जाता है।
अब सुनिए अचला सप्तमी की, यह दो कथाएं।
एक कथा के अनुसार एक राजा के पास अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं था संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था व्रत पूजा पाठ करता था। और विषयों के बताए गए उपाय वह भी करता था वह हमेशा ईश्वर से संतान प्राप्ति का निवेदन किया करता था उसकी मनोकामना पूरी हुई और उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ।
समय के बाद उसका पुत्र बीमार हो गया काफी इलाज कराने के बाद भी विरोध नहीं होगा तब उसे एक संत नहीं है। अचला सप्तमी का व्रत रखने तथा सूर्य देव की पूजा करने की सलाह दी उस राजा ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का व्रत रखा।
वित्त अनुसार पूजा की उसके व्रत के प्रभाव से उसके पुत्र का स्वास्थ्य ठीक हो गया बाद में उसके पुत्र ने भी राज्य पर अच्छा शासन किया और लोकप्रिय हुआ इस प्रकार से अचला सप्तमी के व्रत के प्रभाव से लोगों को मोच संतान निरोगी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
दूसरी कथा के अनुसार।
एक एक महिला ने अपने पूरे जीवन में कभी कोई दानपुर नहीं किया था। वृद्धावस्था में उसे अपनी इस गलती का ज्ञान होगा तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई उसने मुनि को अपने मन की बात कह सुनाई तब वशिष्ठ जी ने उसे रथसप्तमी यानी अचला सप्तमी के व्रत के महत्व को बताया।
साथ ही कहा कि उसे भी अचला सप्तमी का व्रत करना चाहिए यह व्रत करने से लाभ प्राप्त होता है उन्होंने उस वृद्धा को व्रत की विधि भी बताई माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि आने पर उस महिला ने अचला सप्तमी का व्रत रखा बताई गई विधि के अनुसार ही सूर्य देव की पूजा थी।
जब उसका निधन हुआ तो अचला सप्तमी व्रत से प्राप्त पुण्य के प्रभाव से उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई अचला सप्तमी व्रत की पूजा विधि अचला सप्तमी को सूर्य देव के जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की उपासना करके व्रत करने से आपको सभी रोग और कष्ट से मुक्ति मिलती है।
सूर्य देव की उपासना से सभी भक्तों को आरोप की प्राप्ति होती है। अचला सप्तमी के दिन सभी लोगों को स्नान करके चावल के दूर्वा चंदन और फल आदि से भगवान सूर्य की पूजा करनी चाहिए आज के दिन सूर्य देव को जल देना बहुत ही फलदाई माना जाता है।
अगर आपको गुरुदेव को नित्य प्रति जल देना आरंभ करना है। तो आज की अचला सप्तमी से ऐसा शुरू कर सकते हैं।
रथ सप्तमी की पूजा विधि क्या है?
रथ सप्तमी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहने इसके बाद एक तांबे के लोटे में गंगा जल मिलाकर पानी भर ले फिर उसमें लाल चंदन लाल पुष्प अक्षत और शक्कर मिला ले।
ओम सूर्य देवाय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को जल अर्पित कर दें और धूपिया अगरबत्ती जला दें उसके बाद आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें सूर्य चालीसा का पाठ करें फिर सूर्यदेव की गाय के घी वाले दीपक से आरती करें।
सूरत देव की पूजा के दौरान विशेष कार्य की सिद्धि के लिए आप सूर्य मंत्रों का जाप के कर सकते हैं। पूजा के बाद केस में तांबा और मसूर की दाल आदि का दान कर सकते है।
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