Simhastha Kumbh Mela 2021 Kumbh festival.
दुनिया का सबसे बड़ा शो 15 जनवरी से 5 मार्च 2019 प्रयागराज इलाहाबाद का कुंभ मेला है जिसमें लगभग 15 करोड लोगों ने हिस्सा लिया जो दूसरे धार्मिक समारोह के मुकाबले कहीं ज्यादा है जैसे कि वार्षिक हज सम्मेलन जिसमें 20 से 2500000 लोग शामिल होते हैं। और दुनिया के सबसे लोकप्रिय सामिल होते है।
सांस्कृतिक समारोह जैसे रियो कार्निवल 700000 और दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फीफा वर्ल्ड कप से भी ज्यादा जिसे देखने स्वतंत्र लाख दरअसल 2018 में रूस आए थे। इतने सारे लोगों को आकर्षित करने का एक बड़ा कारण यह है कि कौन-कौन 12 सालों में सिर्फ एक बार आयोजित किया जाता है।
2019 संस्करण अर्ध कुंभ की राशि में सूर्य और चंद्रमा की राशि चक्र पर निर्भर होती है प्रयागराज में कुंभ राशि आयोजित होने के लिए मेष में बृहस्पति और मकर में सूर्य और चंद्रमा की आवश्यकता होती है। कुंभकार कल्पित कथा पुराण शास्त्र के समुद्र मंथन में उल्लेख कुंभ का संस्कृत अर्थ है कलश बर्तन या प्याला जिसमें है अनंत जीवन यानी अमृत माना जाता है कि देवता यानी भगवान और असुर यानी राक्षस के समय पर शिव सागर के साथ मार खाते हुए।
ब्राह्मण के कुछ खगोलीय क्षेत्र में स्थित है क्या ये वो विकी भैया आकाशगंगा हो सकता था दोनों ने मिलकर मंच द्वारा अमृत निकालने का फैसला किया और आपस में एक समझौता भी किया अमृता में बराबरी का हिस्सा बनेंगे।
मंदराचल पर्वत को मथनी की छड़ी के रूप में और नागों के राजा वासुकी को मछली की रस्सी के रूप में इस्तेमाल करते हुए उन्होंने प्रक्रिया शुरू की सांप की पूंछ पर खड़े हुए थे देवता और राक्षस की ओर पहले मंथन से बाहर निकला जिसे मान शिव ने किया लेकिन उन पर कोई प्रभाव नहीं हुआ इसी वजह से उन्हें नीलकंठ भी पुकारा जाता है जिसका जंक्शन शिवरात्रि का त्यौहार है।
यह तो पी लिया लेकिन कुछ बोले नीचे गिर गए जिससे सांप बिच्छू और अन्य जहरीले जंतु रेचक अचानक मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा कि भगवान विष्णु ने विशालकाय कछुए का अवतार धारण किया और जोड़ी पीठ पर टूट के बाहर को आसरा दिया यह घटना यूनानी देवता एटलस की याद दिलाते हैं जिन्होंने दुनिया का बोझ अपने कंधों पर उठाया था कई हजारों सालों के बाद कई बाधाएं मारकर धन्वंतरी वैद्य अमृत का फूल लेकर प्रकट हुए।
मगर देवताओं को राक्षसों पर भरोसा नहीं था और वह अमृत का प्याला जबरदस्ती छीन कर 4 देवताओं को सौंप दें बृहस्पति सूर्य शनि और चंद्रमा।
जब ये राकछक तो पता चला और 12 साल यह हमें बाइबल की कहानी की याद दिलाता है जो बताते हैं 6 दिनों में पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ छीना झपटी के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदे चार स्थानों पर गिरी जिसके बाद से यह माना जाता है कि उन स्थानों पर रहस्य छुपा हुआ है। इलाहाबाद हरिद्वार उज्जैन और नाशिक प्रयागराज इलाहाबाद के अलावा 36 और 12 सालों में आयोजित किए जाते हैं।
कुंभ 2005 हरिद्वार में होगा 2025 में पुनपुन प्रयागराज में और 2027 में ना उन दिनों जब आम मालूमात कम थी ऐसी कथाएं गंभीर सवालों को जवाब देने में मदद करते थे जिंदगी और मौत अच्छा और बुरा कर्मा।
कुंभ मेला शब्द का सबसे पहले उल्लेख 1695 और 1759 में खुलासा खुद तारीख और चारा गुलशन के हंस लेख में मिलता है। प्रयाग कुंभ मेले स्थल के लेखक बताते हैं प्राचीन हिंदू ग्रंथों में से कोई भी प्रयागराज मेले का उल्लेख कुंभ मेले के रूप में नहीं करता।
"कैमा मैथिली लेखक इन एवरी हिस्ट्री ऑफ इंडिया।
कुंभ मेला का जिक्र नहीं है पुजारी को कथा से मिला लिया।"
इलाहाबाद में कुंभ मेले का पहला ब्रिटिश संधार 18 सो 68 में मिलता है जनवरी अट्ठारह सौ सत्तर में आयोजित होने वाले कार्य तीर्थ यात्रा में स्वच्छता नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता है राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आए चीनी बौद्ध भिक्षु श्याम के 66301 मेले के बारे में जरूर बताता है।
हालांकि यह जिक्र करते हैं कि यह मेला हर 5 साल में होता है बारा नहीं और यह बहुत उत्सव होने की संभावना है क्योंकि सम्राट हर्षवर्धन बहुत से जो भी हो 15 जनवरी 2019 ठीक 4:00 बजे 13 अखाड़े से संबंधित साधु त्रिवेणी संगम गंगा जमुना और पवित्र सरस्वती नदियों के संगम की ओर निकलते हैं।
कुछ रंग बिरंगे फूलों का भजन शिक्षकों की आवाज बंदरों की पुष्टि हुई गलतियों के बीच कुंभ की पहचान है तीन पारंपरिक शाही स्नान जिसमें तलेले तो माना जाता है कि भक्तों ने अमरता प्राप्त कर ली है मकर संक्रांति जो का पहला दिन होता है।
अमावस्या चंद्रमा बिना रात और बसंत पंचमी की जागती सुभाष तीर्थ यात्रियों का एक विशाल प्रभाव को समायोजित करने के लिए गंगा के किनारे 3200 एकड़ का एक शहर स्थापित किया गया कुंभ नगरी जिसमें आंतरिक सड़कें 250 किलोमीटर लंबी और 22 लोगों के साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा अस्थाई शहर है।
- रहस्य मई कुंभ मेला को क्यों मनाया जाता है। 12 साल में एक बार।
तो दोस्तो क्यों होता है 12 साल में एक बार कुंभ मेले का आयोजन कुंभ मेले का आयोजन चार स्थानों पर हरिद्वार प्रयाग नासिक और उज्जैन में होता है हर जगह कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में एक बार होता है। कुंभ मेले के 12 वर्ष में एक बार आयोजित होने के पीछे दो मान्यताएं है।
- पहली ज्योतिष मान्यता
की मान्यता कहती है कि चक्र में स्थित 30605 को 12 भागों में बांटकर 12 राशियों की कल्पना की गई है वह चक्र से तात्पर्य है आकाश मंडल हर कुंभ के निर्धारित मुहूर्त में गुरु और सूर्य विशेष महत्वपूर्ण होते हैं गुरु एक राशि पर लगभग 13 महीने तक रहता है फिर उसी राशि पर आने में 12 वर्ष का समय लगता है।
यह कारण है कि कुंभ पर्व 12 वर्ष में एक बार होता है हरिद्वार प्रयाग और नासिक में हर 12 साल में कुंभ की परंपरा है उज्जैन में कुंभ को शिकस्त कहा जाता है। क्योंकि इस समय गुरु सिंह राशि में होता है।
- दूसरी पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार इंद्र देवता ने महर्षि दुर्वासा को रास्ते में मिलने पर जब प्रणाम किया तो ऋषि दुर्वासा ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी माला दी लेकिन इंद्र ने माला का आदर ना कर अपने एरावत हाथी के मस्तक पर उसे डाल दिया जिसने माला को खून से घटकर पैरों से कुचल डाला इस पर दुर्वासा ने क्रोधित होकर इंद्र को श्रीविन होने का श्राप दिया।
इसका के बाद इंद्र घबराए हुए ब्रह्मा के पास पहुंचे रविंद्र को लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इंद्र की रक्षा करने की प्रार्थना की भगवान ने कहा कि इस समय सुरों का आतंक है इसीलिए तुम उन से संधि कर लो और देवता और असुर दोनों मिलकर समुद्र मंथन कर अमृत निकालो जब अमृत निकलेगा तो हम तुम लोगों को अमृता देंगे और असुरों को केवल श्रम ही हाथ में लेगा पृथ्वी के उत्तरी भाग में हिमालय के समीप देवता और दानवों ने समुद्र का मंथन किया इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बनाया गया।
जिसके अल्सर ओं क्षीरसागर से पारिजात एरावत हाथी उच्च सेवा घोड़ा रंभा कल्पवृक्ष शंख गदा धनुष कौस्तुभ मणि चंद्र मद कामधेनु अमृत कलश लिए धनवंतरी निकले।
इस कलश के लिए अश्रु और जातियों में संघर्ष शुरू हो गया अमृत कलश को दैत्यों से बचाने के लिए देवराज इंद्र के पुत्र जयंत बृहस्पति चंद्रमा सूर्य और शनि की सहायता से उसे लेकर भागे।
अंखियों ने उनका पीछा किया यह पूछा 12 दिनों तक होता रहा देवता उस कलश को छुपाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ भागते रहे और उनका पीछा करते रहे इस भागदौड़ में देवताओं को पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करनी पड़ी इन 12 दिनों की भाग दौड़ में देवताओं ने अमृत कलश को हरिद्वार प्रयाग नासिक उज्जैन नामक स्थान पर रखा इन चारों में रखे गए कलश से अमृत की कुछ बूंदें छलक पड़े।
इसे को शांत करने के लिए समझौता हुआ भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर जातियों को घर में रखा और अमृत को इस प्रकार बांटा की तैयारियों की बारी आने पर कलश रिक्त हो गया देवताओं का एक दिन मनुष्य के 1 वर्ष के बराबर माना गया है इसीलिए हर 12 वर्ष में कुंभ की परंपरा है तो दोस्तों यह की मान्यताएं जो जुड़ी थी कुंभ के मेले के साथ।
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