Shri Jagannath Ratha Yatra Essay in हिंदी।
दोस्तों उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ जी का मंदिर समस्त दुनिया में प्रसिद्ध है। दोस्तों यह मंदिर हिंदुओं के चारों धाम के तीर्थ में से एक हैं। मरने से पहले हर हिंदू को चारों धाम की यात्रा करनी चाहिए इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगन्नाथपुरी में भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण का मंदिर है जो बहुत विशाल और कई हजार साल पुराना है। इस मंदिर में लाखों भक्त हर साल दर्शन के लिए आते हैं।
जगह का एक मुख्य आकर्षण जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा भी है यह रथयात्रा किसी त्योहार से कम नहीं होती इसे पूरी के अलावा देश-विदेश के कई हिस्सों में भी निकाली जाती है।
बात करते हैं कि पुरी की रथयात्रा निकाली कब जाती है दोस्तों जगन्नाथ जी की रथ यात्रा घरसाना साधना अर्थात जुलाई महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाती है। 1 साल के लिए 25 जून दिन रविवार को निकाली जाएगी रथ यात्रा का महोत्सव 10 दिन का होता है जो सच होता है।
कानपुरी में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। और इस महा आयोजन का हिस्सा बनते हैं इस दिन भगवान कृष्ण के भाई बलराम वह उनकी बहन सुभद्रा को रथ में बैठा कर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है।
भव्य रूप से सजाया जाता है जिसकी तैयारी महीने के पहले से शुरू हो जाती है। और चलिए हम आपको बताते हैं। जगरनाथ पुरी यात्रा की कहानी के बारे में दोस्तों इस यात्रा से जुड़ी बहुत सी कथाएं प्रचलित है इस महोत्सव का आयोजन होता है।
कुछ लोगों का मानना है। कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके आती है और अपने भाइयों से नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त करती है। भगवान श्री कृष्ण बलराम सुभद्रा के साथ रात में सवार होकर नगर में जाते हैं इसी के बाद से रथ यात्रा कब शुरू हुआ।
चलावा कहते हैं कि गुंडिचा मंदिर में क्षेत्र देवी भगवान श्री कृष्ण की मां है जो तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती है 10 दिन के लिए जाते हैं। कृष्ण के मामा कंस तूने मथुरा बुलाते हैं इसके लिए गोकुल में शायरी के साथ रह जाता है।
कृष्ण अपने भाई बहन के साथ रथ में सवार होकर मथुरा जाते हैं जिसके बाद से रथयात्रा पर्व की शुरुआत हुई कुछ लोगों का मानना है कि इस दिन श्री कृष्ण कंस का वध करके बलराम के साथ अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए बलराम के साथ मथुरा में रथ यात्रा करते है।
कुछ लोगो का मानना है। कि रानियां माता रोहित उनकी रासलीला सुनाने को कहती है माता रोहिणी को लगता है इलाके में होना चाहिए। यह को उसे कृष्ण बलराम के साथ इस तरह यात्रा के लिए भेज देती है कभी वहां नारद जी प्रकट होते हैं।
एक साथ देख कर भी प्रसन्न चित्त हो जाते हैं। और प्रार्थना करते हैं कि इन तीनों के ऐसे ही दर्शन हर साल होते रहे उनकी प्रार्थना सुन ली जाती है और रथयात्रा के द्वारा इन तीनों के दर्शन सबको होते रहते हैं।
जगन्नाथ मंदिर का फेस्टिवल
दोस्तों कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की मौत के बाद जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया गया तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अधिक दुखी होते हैं भगवान श्री कृष्ण के शरीर को लेकर जाते हैं।
अभिषेक सुभद्रा की खो जाती है। उसी समय भारत के पूर्व में स्थित दूरी के राजा इंद्र दुनिया को सपना आता है कि भगवान श्री कृष्ण का शरीर समुद्र में तैर रहा है। अतः उन्हें यहां कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवाने चाहिए और मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए उन्हें स्वप्न में दूध बोलते हैं कि कृष्ण के साथ बलराम सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनाई जाए।
और भगवान श्री कृष्ण की हस्तियों को उनके प्रतिमा के पीछे छेद करके रखा जाए राजा का सपना सच हुआ उन्हें खुशियां मिल गई लेकिन अब वह सोच रहे थे कि इस प्रतिमा का निर्माण कौन करेगा माना जाता है। इस बार भगवान विश्वकर्मा जी के रूप में प्रकट होते हैं।
मूर्ति का कार्य शुरू करते हैं कार्य शुरू करने से पहले सभी से बोलते हैं। कि उन्हें काम करते वक्त परेशान नहीं किया जाए नहीं तो यह बीच में ही काम छोड़कर चले जाएंगे कुछ महीने हो जाने के बाद मूर्ति नहीं बन पाती है। तब उतावली के चलते राजा इंद्र बिना पड़ी के रूम का दरवाजा खोल देते हैं।
भगवान विश्वकर्मा गायब हो जाते हैं मूर्ति उस समय पूरी नहीं बन पाती है। लेकिन राजा ऐसे ही मूर्ति को स्थापित कर देते हैं। और सबसे पहले एक मूर्ति के पीछे भगवान श्री कृष्ण की अस्थियां रखते हैं। और मंदिर में विराजमान कर देते हैं दोस्तों एक राजकीय जुलूस तीन विशाल रथों में भगवान श्री कृष्ण बलराम और सुभद्रा का हर साल मूर्तियों के साथ निकाला जाता है। भगवान श्री कृष्ण बलराम सुभद्रा के प्रतिमान हर 12 साल के बाद बद्री जाती है। जोक नई प्रतिमा रहती है वह भी पूरी बनी हुई नहीं रहती है।
यह मंदिर है जहां तीन भाई बहन की प्रतिमा एक साथ हैं और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
कुछ रोचक बाते जो जगन्नाथ रथ यात्रा की है।
दोस्तों भारत के ओडिशा स्थित पूरी नगरी में इन दिनों जगरनाथ यात्रा की तैयारी अपने अंतिम चरण में है। वर्ष में एक बार निकलने वाली इस रथयात्रा का देश और दुनिया के लिए एक विशेष महत्व है।
भारत के चार पवित्र धामों में से एक पूरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जगरनाथ रूप में विराजते हैं दोस्तों पुरी में जगन्नाथ यात्रा में एक नहीं बल्कि निकलते हैं। जिसमें क्रमाशा बलदेव कृष्ण होते हैं।
दोस्तों जगरनाथ की रथ को गरुड़ध्वज दिया नंदीघोष सुभद्रा के रथ को दर्द जलन और बलदेव की रथ गोपाल ध्वज कहा जाता है। जिन का रंग लाल और पीला होता है। यह रकम लाइन में होते हैं। जिसमें से पहले रथ पर बलभद्र बीच वाले रथ पर सुभद्रा जी और सबसे पीछे वाले रथ में जगन्नाथ जी विराजमान होते हैं।
तीनों रथों को सिंह द्वार पर आषाढ़ की सुकृति जिया को लाया जाता है। इसके बाद मूर्तियों को स्नान और वस्त्र बनाने के बाद इसमें विराजित किया जाता है। दोस्तों जब तैयार हो जाते हैं तो इसके बाद पूरी का राजा देख पालकी में बैठकर इनकी प्रार्थना करता है।
और ई कत्ल रूप से रथ मंडे को झाड़ू से साफ करते हैं। जिससे हमारा नाम से जाना जाता है। तो इसके बाद लगातार तीन औरतों को एक रास्ता से बांधा जाता है। जिसे भक्तजन खींचते हैं माना जाता है। दोस्तों की रस्सी को छूने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और इंसान जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
दोस्तों भगवान का यह रखी हुई नगर से होते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं। जहां पर 7 दिनों तक भगवान जगरनाथ यहां पर विश्राम करते हैं इसके बाद फिर से रथों को आषाढ़ के दसवें दिन मुख्य मंदिर की ओर ले जाया जाता है और इसे पूरा यात्रा कहते हैं।
मंदिर में आकर सभी मूर्तियां रथ पर ही रहती है एकादशी के दिन मंदिर के द्वार खोलकर भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अंदर पुनः स्थापित कर दी जाती है तो यह था। दोस्तों जगरनाथ मंदिर से जुड़ी उसका इतिहास और उससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य और दोस्तों चलते चलते एक ज्ञान की भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है उसका विश्वास उसी देवता में कर देता हूं।
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