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What is Kartik Purnima festival in India best way to celebrate in हिंदी।।

जानिए kartik Purnima festival के बारे में special जानकारी। 2023.

कार्तिक पूर्णिमा की कथा।

पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। 
इस दिन गंगा स्नान विधायक और ईश्वर की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले दानकुनी समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदाई होते हैं। कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव की नगरी काशी यानी बनारस में दीपावली मनाई जाती है।
देव दीपावली के दिन भगवान शिव और गंगा माता की पूजा की जाती है। शाम के समय में गंगा की आरती होती है। देव दीपावली के संदर्भ में दो पौराणिक कथाएं मिलती हैं।
इनमें से एक कथा महर्षि विश्वामित्र।
पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके 3 पुत्र थे डार्क आज कमला और मिथुन वाली भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय तारकासुर का वध किया।
अपने पिता की हत्या की खबर सुनने हैं। तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए हैं। तीनों ने मिलकर ब्रह्मा जी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की ब्रह्मा जी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए।
होली की मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो तीनो ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्मा जी से तीन अलग-अलग नगरों का निर्माण कराने के लिए कहा।
इसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके 1000 साल बाद जब हम मिले और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाए और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बार से नष्ट करने की क्षमता रखता हो वही हमारी मृत्यु का कारण ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया।
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुई है। ब्रह्मा जी के कहने पर मैदान आपने उनके लिए 3 नगरों का निर्माण किया ताकत के लिए सोने का कमरा के लिए चांदी का और विभिन्न वाली के लिए लोहे का नगर बनवाया गया।
तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शिव का की शरण में गए इंद्र की बातचीत भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक विपक्ष का निर्माण किया इस देश की हर एक चीज देवताओं से बनी है।
चंद्रमा और सूर्य से पहले बनी और कुवैत के चार घोड़े बने हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बने भगवान शिव खुद बने बने अग्निपथ पर सवार हुए तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ।
जैसे ही यह तीन औरतों के क्षेत्र में आए हैं। भगवान शिव ने भारत छोड़ तीनों का नाश करती है। इसी पद के बाद में भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।
यह बात कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ है इसलिए इस दिन को तिरुपुर के पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाने लगा।
उस दिन सभी देव दीपक जलाते हैं। इस दीपोत्सव को देव दीपावली कहा जाता है।

दूसरी कथा भगवान शिव से जुड़ी है।

दूसरी कथा के अनुसार एक बार विश्वामित्र जी ने गिद्धों की सत्ता को चुनौती दी थी। उन्होंने अपने तप के बल शिक्षकों को शत-शत ईश्वर भेज दिया यह देखकर देवता अचंभित रह गए विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी।
देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगी जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा उनको यह हार स्वीकार नहीं थी। तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी इससे देवता भयभीत हो गए उन्होंने अपनी गलती की क्षमा याचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्थिति प्रारंभ करें दी।
अंत में देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई जिसे देव दीपावली कहा गया।
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह के समय किसी पवित्र नदी सरोवर कुंड में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। स्नान के बाद दीपदान के साथ ही भगवान श्री कृष्ण और राधा की पूजा का विधान है।
मान्यता है। कि इस दिन किए गए दान से पुण्य फल भी दुगना मिलता है। गाय हाथी घोड़ा दत्त और घी का दान करने से संपत्ति बढ़ती है। वही भीड़ का दान करने से ग्रह योग के कष्ट दूर होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखने वालों को इस दिन हवन जरूर करना चाहिए इसके साथ ही यदि व्यक्ति किसी जरूरतमंद को भोजन कराते हैं। तो उन्हें लाभ मिलेगा।
पूर्णिमा का महत्व सभी पूर्णिमा में कार्तिक पूर्णिमा को सबसे पवित्र माना जाता है। इस दिन किए जाने वाले दान पुण्य के कार्य विशेष फलदाई होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्मा विष्णु और शिव तीनों की आराधना की जाती है। कुछ लोग इस दिन भी तुलसी और शालिग्राम का दौरा कर आते हैं।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में धार्मिक स्नान करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा से मूर्ति की प्राप्ति होती हैं।

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